भोपाल। एक फिल्म का डॉयलाग था "मैं अच्छा करने जाता हूं लेकिन बुरा हो जाता है।" भारत में शायद हरेक पार्टी के नेताओं पर यह डॉयलाग फिट बैठता है। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान इन दिनों आनंद मंत्रालय पर काम कर रहे हैं।यह अभी एक कल्पना है, जहां सब आनंद रहेगा, जिससे जनता आनंदित रह सकेगी। यह विचार या सुक्षाव मुख्यमंत्री को एक गुरू ने दिया। शायद वह भी इसी फार्मूले पर खुद को और अपने शिष्यों को आनंदमय रखते होंगे। मैं उस गुरू से कभी नहीं मिला, अगर मिलता तो यह जरूर पूछता कि लोकतंत्र में आनंद कैसे होना चाहिये। ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर। स्वभाविक है लोकतंत्र में हमेशा आनंद नीचे से ऊपर की ओर होगा। लेकिन इसको लेकर प्रयास आज से नहीं। जब भारत में लोकतंत्र की नींव ऱखी गई तब से चल रही है। खुशहाल भारत , अानंदमय भारत , आनंद मंत्रालय। यह सब तब होगा जब सरकारी दफ्तरों में काम होगा। काम में पारदर्शीता लाने को लेकर बहुत प्रयोग किये गए। आनलाइन प्रक्रिया से लेकर एक्स से जेड तक। रेलवे ने जब टिकिट की आनलाइन प्रक्रिया शुरू की तो लोगों ने कहा कि अब गड़बड़ी नहीं होगी। लेकिन गड़बड़ियां हुई और आज भी हो रही है।
आनंद मंत्रालय की बैठक जब शिवराज ले रहे थे ,तभी उन्हीं के मंत्री ने एक फाइल को लेकर मुख्य सचिव को घेरा। मंत्री महोदया ने कहा कि 11 माह से काम नहीं हुआ और फाइल वापस आ गई। सिंगल विंडों से कैसे काम होना चाहिये , यह अभी तक तय नहीं हुआ।
जब सरकार के कामों पर मंत्री सवाल उठाएगा, तो ब्यूरोक्रेटेस और आम आदमी का सवाल उठाना लाजिमी है। अब प्रदेश में कौन आनंदमय हैं, ब्यूरोक्रेटेस, मंत्री या आम आदमी। ब्यूरोके्टेस अगर जनता के प्रति टेंशन में होते ,तो आनंदमय मंत्रालय की जरूरत पड़ती। लेकिन यहां तो उलटा है। अगर भरोसा न हो तो घुमकर आए, जरा मंत्रालय, सतपुड़ा भवन, विंध्याचल और भोपाल नगर निगम में। सीधे तौर पर काम हो जाए तो मान लीजिएगा कि आप का ग्रह गोचर बेहतर था, अन्यथा टालमटौल को वह पाठ पढ़ाया जाएगा कि आप भी टालमटौल में ट्रेनेड हो जाएंगे।
फिर आनंद मंत्रालय की जरूरत किसको हैं। यह आपको तय करना है। प्रदेश में विकास की क्या धारा है, वह किसी से छुपी नहीं है। विकास जनता के लिये हैं, या कंपनी के लिये। यह आप मत सोचिए विकास का लाभ उठाए। उसी तरह आनंद मंत्रालय से जनता को कितना आनंद मिलेगा और यह आनंद किस तरीके का होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यह प्रयोग पहले बीजेपी पार्टी में करनी चाहिये। जिसमें कार्यकर्ता से पदाधिकारी तक लोगों से सीधे संपर्क में रहते हैं और तब इसको कहीं लागू करते। काम में मजा तब आएगा जब आप टेंशन फ्री होगे। आप खुद सोचिये टेंशन फ्री कोई नहीं है। जिसके पास सक्रियता वाला दिमाग है, उसके पास टेंशन है। फिर आनंद मंत्रालय से क्या होगा और जनता को इससे क्या मतलब। आप तो चुनावी घोषणा के समय जो वादे किए गए थे, उस पर फोकस करों। यूपी के मुख्यमंत्री ने एक दिन पूर्व ही कहा कि जो चुनावी घोषणा समाजवादी पार्टी ने की थी, उसे लगभग पूरा कर लिया गया है। मगर सीएम साहब उस घोषणा के साथ यूपी की जनता को अापने बहुत कुछ तोहफे में भी दिया है। खैर बात तो मध्य प्रदेश की हो रही है। वह भी आनंद मंत्रालय की। इस पर एक मित्र से चर्चा कर रहा था, उसने चुटकी लेते हुए कहा कि आनंदमय मंत्रालय की जगह आनंदमय बीजेपी होनी चाहिये। कैबिनेट विस्तार के बाद उनको सबसे ज्यादा जरूरत है।
आनंद की जरूरत तो सबको है। सरकार मंत्रालय और जनता को किस तरह का आनंद देना चाहती है। कभी -कभी शरीर में कोई घाव या हिस्सा अगर स्थाई तौर पर दर्द देता है, तो हमलोग उसका भी आनंद लेते हैं। अब मुख्यमंत्री खुद तय करें कि आनंद , सुखमय होगा या वो दर्द भरा।
आनंद मंत्रालय की बैठक जब शिवराज ले रहे थे ,तभी उन्हीं के मंत्री ने एक फाइल को लेकर मुख्य सचिव को घेरा। मंत्री महोदया ने कहा कि 11 माह से काम नहीं हुआ और फाइल वापस आ गई। सिंगल विंडों से कैसे काम होना चाहिये , यह अभी तक तय नहीं हुआ।
जब सरकार के कामों पर मंत्री सवाल उठाएगा, तो ब्यूरोक्रेटेस और आम आदमी का सवाल उठाना लाजिमी है। अब प्रदेश में कौन आनंदमय हैं, ब्यूरोक्रेटेस, मंत्री या आम आदमी। ब्यूरोके्टेस अगर जनता के प्रति टेंशन में होते ,तो आनंदमय मंत्रालय की जरूरत पड़ती। लेकिन यहां तो उलटा है। अगर भरोसा न हो तो घुमकर आए, जरा मंत्रालय, सतपुड़ा भवन, विंध्याचल और भोपाल नगर निगम में। सीधे तौर पर काम हो जाए तो मान लीजिएगा कि आप का ग्रह गोचर बेहतर था, अन्यथा टालमटौल को वह पाठ पढ़ाया जाएगा कि आप भी टालमटौल में ट्रेनेड हो जाएंगे।
फिर आनंद मंत्रालय की जरूरत किसको हैं। यह आपको तय करना है। प्रदेश में विकास की क्या धारा है, वह किसी से छुपी नहीं है। विकास जनता के लिये हैं, या कंपनी के लिये। यह आप मत सोचिए विकास का लाभ उठाए। उसी तरह आनंद मंत्रालय से जनता को कितना आनंद मिलेगा और यह आनंद किस तरीके का होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यह प्रयोग पहले बीजेपी पार्टी में करनी चाहिये। जिसमें कार्यकर्ता से पदाधिकारी तक लोगों से सीधे संपर्क में रहते हैं और तब इसको कहीं लागू करते। काम में मजा तब आएगा जब आप टेंशन फ्री होगे। आप खुद सोचिये टेंशन फ्री कोई नहीं है। जिसके पास सक्रियता वाला दिमाग है, उसके पास टेंशन है। फिर आनंद मंत्रालय से क्या होगा और जनता को इससे क्या मतलब। आप तो चुनावी घोषणा के समय जो वादे किए गए थे, उस पर फोकस करों। यूपी के मुख्यमंत्री ने एक दिन पूर्व ही कहा कि जो चुनावी घोषणा समाजवादी पार्टी ने की थी, उसे लगभग पूरा कर लिया गया है। मगर सीएम साहब उस घोषणा के साथ यूपी की जनता को अापने बहुत कुछ तोहफे में भी दिया है। खैर बात तो मध्य प्रदेश की हो रही है। वह भी आनंद मंत्रालय की। इस पर एक मित्र से चर्चा कर रहा था, उसने चुटकी लेते हुए कहा कि आनंदमय मंत्रालय की जगह आनंदमय बीजेपी होनी चाहिये। कैबिनेट विस्तार के बाद उनको सबसे ज्यादा जरूरत है।
आनंद की जरूरत तो सबको है। सरकार मंत्रालय और जनता को किस तरह का आनंद देना चाहती है। कभी -कभी शरीर में कोई घाव या हिस्सा अगर स्थाई तौर पर दर्द देता है, तो हमलोग उसका भी आनंद लेते हैं। अब मुख्यमंत्री खुद तय करें कि आनंद , सुखमय होगा या वो दर्द भरा।
No comments:
Post a Comment