Monday, 25 July 2016

'गौर ' पर गौर करें शिवराज


मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर शायद ही ऐसे विधायक होंगे, जो ऊपर से नीचे की ओर गिरते अपने राजनीति कैरियर की ग्राफ और इस उम्र में दमखम के साथ लड़ने को तैयार बैठे हैं। मानसून विधानसभा के सत्र को गौर साहब ने बीजेपी के लिये गर्म कर दिया। राजधानी में इन दिनों जोरदार बारिश हो रही है, लेकिन मप्र की राजनीति में सत्ता पक्ष और बीजेपी पदाधिकारियों में अलग तरह की गर्मी देखने को मिल रही है। 75 साल के फार्मूले को लागू करके मध्य प्रदेश में बीजेपी ने कभी नहीं सोचा होगा कि उम्रदराज नेता पार्टी की छवि और सीधा मुख्यमंत्री के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाएंगे। स्व. हरिवंश राय बच्चन की एक बात अकसर अमिताभ बच्चन दोहराते है मन को तो अच्छा और मन का न हो तो बहुत अच्छा। गौर साहब के मन का तो नहीं हुआ, क्योंकि पार्टी ने उनसे मंत्रालय छिन कर उन्हें विधायक बना दिया। राजनीति में जमने के बाद बाबूलाल गौर ने पहली बार विधायक बने थे, आज भी वो विधायक ही हो गए। बस बदला तो सिर्फ उम्र और समय। गौर के अंदर एंग्रीमैन का रूप देखकर लालकृष्ण आडवाणी सोचते होंगे , अगर में भी विरोध करने का यहीं तीखा तेवर दिखाता तो बात ही कुछ और होती। सत्ता में बैठकर सत्ता के खिलाफ बोलना और चलना. मतलब साफ है कि आप अपने कैरियर पर दांव लगा रहे हो। गौर ने आज विसं में वो कुछ कहा जो विपक्ष नहीं कह सका और न ही किसी भी पत्रकार ने अपने कलम से इस कर्ज के कटाक्ष पर टिप्पणी की होगी। गौर ने सरकार पर आरोप लगाए कि सरकार कर्ज लेकर घी पी रही है। जनाब सरकार ही नहीं, इस देश का अधिकांश नागरिक कर्ज लेकर ही घी पी रहा है। क्या करें, देश की अर्थव्यवस्था और प्रशासन ने जो कुछ दिया है, वह सिर्फ कर्ज है। जब सरकार कर्ज के सहारे हैं, तो इस राज्य़ का आम इंसान कृषि के लिये कर्ज ले रहा है, वह भी सही ही कर रहा। जब पालनकर्ता ही कर्ज में हैं, तो फिर आम इंसान की बात मत कीजिये। कर्ज इंसान क्यों लेता है, इसके पीछे कई मंशा हो सकती है। कर्ज लेना कोई बुरी चीज नहीं है। सभी देश , राज्य और इंसान भी कर्ज लेकर आगे बढ़ता है और बढ़ता आया है। हां यह जरूर है कि कर्ज का उपयोग कैसे किया जा रहा, किन मदों में किया जा रहा है। जब आप देश के हरेक नागरिक पर कर्ज का भार बताते हो तो उस धन का उपयोग आप कैसे कर रहे हो। यह कोई सरकार नहीं बताता और हमारी इच्छा भी नहीं रही है कि हम कर्ज लेने वाले सरकार से पूछे कि कर्ज लेकर आपने क्या सुधार की या क्या व्यवस्था की।
 बारिश के दौरान नगर निगम व्यवस्था की पोल खुल गई। नगर निगम ने विदेशी कर्ज से कई बार डैनेज पाइललाइन, पीने का पानी हरेक चीज की व्यवस्थित करने का प्रयास किया, लेकिन नतीजन कुछ भी आम आदमी को नहीं मिला या जो मिला उसकी कामयाबी की प्रतिशत इतनी कम थी, कि इसे नाकामी ही माना जा रहा हैं। ऐसे में आप क्या कर और कह सकते है। लोकतंत्र में जनता के पास सिर्फ पांच साल में वोट देने का प्रावधान है। सत्ता में आनी वाली पार्टी किसी राज्य को बेच भी दें, तो जनता वोट वापस लेकर गिरा नहीं सकती है। यह लोकतंत्र की खामी है। इसको अब मान लीजिये , नहीं तो भविष्य में आप ये बात जरूर कहेंगे।
 राजनीति में आने वाले लोगों की सोच में भी बदलाव हुआ है। अब नेता अपने आपको स्थिरता में लाना चाहते है़, तभी तो यह कहते है कि पांच साल की जगह दस साल में चुनाव हो। मतलब पांच साल में काम हम नहीं कर सकते। जबकि प्रतिस्पऱ्धा के बाजार में निजी कंपनियां टाइम लिमिट को कम करके टारगेट दे रही है। शायद इसलिये हमारे बुर्जुग सरकारी नौकरी को बेहतर बताते हैं।
 आप सोचिये अगर राज्य और केंद्र के चुनाव दो - तीन साल में होंगे तो काम करने की प्रतिस्पर्धा इनके अंदर बढ़ेगी। पांच साल में एक घोटाले में जितना पैसा डूबता है, उतने पैसे में चुनाव आराम से हो जाएंगे। और जनाब इसका टेंशन राजनीति पार्टी को क्यों हैंं, जनता का पैसा है, आयकर सहित अन्य कर के माध्यम से जमा होता है,तब चुनाव होता है। इसको लेकर आपको क्यों टेंशन हैं और ये टेंशन कब से होने लगा।
 अब बात गौर साहब की , तो गौर साहब तो वहीं कह रहे हैं, जो उन्होंने देखा है। इसमें गलत क्या है। लोग चुप रह जाते हैं, और वो बोल रहे है। उनका बोलना उनकी अभिव्यक्ति है। गौर ने सरकार से चंद सवाल ही पूछे हैं, इसमें गलत क्या है। हो सकता है यह सवाल किसी पत्रकार या आम लोगों के हो और विधानसभा के प्रतिनिधि होने के कारण पूछ लिय़े। इसमें बुरा क्या है। आप कर्ज में हो, जनता के सेवक हो, लेकिन वेतन में क्य़ों कटौती नहीं। सुविधा में कोई कटौती नहीं।  कर्ज में रहने वाले व्यक्ति से यह सवाल बुजुर्ग की करता है,अगर आपको भरोसा नहीं हो तो दूसरे से पूछ लीजिये या नहीं तो मैडम क्वीन से पूछिए। वो भी यही बात कहेंगे।
 किसानों की बात तो छोड़ दीजिये मुख्यमंत्री साहब, मप्र के किसान भूत प्रेत से प्रताड़ित होकर आत्महत्या कर लेते हैं। डिजीटल इंडिया में जुमला चल सकता हैं, तो भूत प्रेत भी चलेगा। लेकिन एक पत्रकार की बेटी ने आत्महत्या सिर्फ इसलिये कर लिया कि वो आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। इस पर विसं सदन को आप क्या बताएंगे। अगर मुख्यमंत्री साहब कोई आपसे पूछ दें कि आपके राज्य में निजी कंपनी कितनी है, तो आप नहीं बता पाएंगे, क्योंकि आपका श्रम विभाग कुंभकरण की तरह सो रहा है। निजी कंपनी में कार्यरत लोगों को वेतन मिल रहा हैं या नहीं। उससे आपको क्या लेना देना। आपका वेतन तो बढ़ रहा है, साथ में विपक्ष का वेतन भी बढ़ा रहे हैं, तो दिक्कत ही क्या है। चोर चोर मसौरे भाई की तर्ज पर आप काम कर रहे है तो कीजिये राज्य की जनता को भूत प्रेत के साथ छोड़ दीजिए। ये जनता भी अब चुनाव में भूत प्रेत को वोट देगी, क्योंकि सबसे ज्यादा दिक्कत इनको इसी हो रही है।
आज गौर साहब कुछ बोल रहे हैं, तो आपके नए विधायक , जो आपके ही दम पर विधानसभा तक पहुंचे हैं, वो गौर साहब पर टिप्पणी करने से बाज नहीं आ रहे। लेकिन जब अनुशासन पार्टी के अंदर ही नहीं रहा हैं, तो आप और हम क्या करेंगे। अभिव्यक्ति के आजादी का जवाब एक दूसरे को दिया जा रहा है।
 लेकिन इससे पार्टी में जो अंदरूनी कलह की शुरूआत हो रही है, उसको कैसे दमन करेंगे। या फिर केंद्र में बैठे आका को बुलाएंगे, जो खुद दो साल में एक मच्छर तक नहीं मार पाए। उनसे सलाह लेंगे। मुख्यमंत्री साहब जब जादूगर जुमले की आड़ में धोखे का काम करता है, तो वह बाजार हमेशा एक जगह नहीं लगाता। मजमा लगाने के लिये भटकता भी रहता है। यह आपको तय करना है कि मजमा कहां लगाए और कैसे चलाए, क्योंकि लोकतंत्र में बहुमत आपके पास आज हैं और हो सकता है कि कल नहीं हो। 

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