मोदी सरकार बनने के बाद से ही स्मार्ट सिटी चर्चा का विषय रहा है। हालांकि यह कांसेप्ट नया नहीं है, यूके से हरेक देश में इस पर काम शुरू हो चुका हैं। भारत में अन्य योजनाओं के तहत यह भी बहुत ही बाद में शुरू होगा। स्मार्ट सिटी एक तरह से बाजारवाद की देन है, जिस तरीके से कंपनी दारा उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये तरह-तरह के आइडिया निजाद करती है, उसी तरीके से स्मार्ट सिटी कांसेप्ट से हरेक वर्ग के बिजनेसमैन को काम मिलेगा यानि आय के नए स्रोत सामने आएंगे। स्मार्ट सिटी शुरू करने से पहले हमें देखना होगा कि भारत या कोई भी राज्य इसके लिये कितना उपयुक्त है या अभी इन राज्यों , जिले कस्बों में मूलभूत समस्या ही मुस्तैदी की तरह तैनात है। सरकार हरेक पांच साल में बदल जाती है, लेकिन यह देश के लोगों और साथ में ही सरकार का भी दुर्भाग्य है कि शहरों में आज भी समस्या मूलभूत सुविधा की बनी हुई है।
भारत के कई राज्यों में बिजली की सुविधा नहीं है और किसी भी सरकार ने इस समस्या का निदान वचनबद्ध तरीके से नहीं किया, जिसका बाद में उदाहरण दिया जा सके। सड़क का भी यही हाल कुछ हद तक सफलता मिली है, लेकिन इस सफलता को पूर्ण कालिक नहीं कहा जा सकता। रोजगार और मकान की तो बात ही मत कीजिये। कुकुरमुत्ते की तरह निजी कंपनी खुल गई है, लेकिन श्रम कानून आज भी भगवान भरोसे ही चल रहा है। वेतन मिल गया तो अच्छा नहीं तो दूसरी कंपनी पकड़ लीजिए। फिर हम और आप कितने स्मार्ट हैं।
आज भी माल के लिफ्ट को चलाने के लिये कहा जाए तो लोग पैदल चलना ज्यादा पसंद करते हैं। जिस देश में मूल समस्याओं को निराकरण नहीं हो सका हो, वहां स्मार्ट सिटी क्या काम। स्मार्ट सिटी का नाम सुनते ही ऐसा लगता है कि सरकार जनता पर जबरदस्ती यह योजना थोपना चाहती है।
इस योजना के घोषणा के सालभर बाद इस ब्लाग को क्यों लिख रहा हूं। ऐसा आप सोचते होंगे। लेकिन शहर की खामियों से विगत दो चार दिन में ही चिरपरिचित हुआ हूं। भारी बारिश ने स्मार्ट सिटी की कहावत कुछ तरह बयां कर दी 'मिले मियां के मार नहीं पिये मियां ताड़ी'। मतलब यहां जनाव रहने का ठिकाना नहीं, बारिश अगर मूड में हो तो लोगों को ठिकाना ढूंढना पड़ता है। सरकार खुद नाले से तालाब के दृश्य को देखती है। आपका नाला ऐसा है, जो कचड़े को समाहित करने की जगह उगल देता हैं। ऐसे में आप स्मार्ट सिटी की खुद आप कल्पना कीजिए। नीचे पानी में सांप तैर रहा होगा और आप मोबाइल पर चैट करेंगे। ऐसा संभव नहीं या मोबाइल पर नगर निगम , बिजली विभाग को फोन करेंगे। यह भी संभव नहीं, सरकारी कर्मचारी इतना समझदार है कि मौके की नजाकत को भांप कर वह फोन ही डिस्कनेक्ट कर देता हैं या व्यस्त कर देता है। लो कर लो बात हो गए आप स्मार्ट।
स्मार्ट सिटी की कल्पना कई देशों ने अपने अपने तरीके सी की है, जहां पानी का जमाव न हो, मूल भूत सुविधा हो और फिर स्मार्ट व्यवस्था हो, लेकिन देश में एक भी चीजे में स्मार्ट व्यवस्था है। आप खुद सोचिए , सरकारी योजनाओं में सबसे पहले रेलवे आरक्षण को आनलाइन तैयार किया गया। आरक्षण आनलाइन हुआ लेकिन कितने को इसका लाभ मिलता है। लोग आज भी कंफर्म टिकिट के लिये दलाल के पास ही पहुंचते है।
सरकार अकसर आपको स्मार्ट बनाने की कोशिश में हैं। आपको कहती है स्मार्ट बनों, सब्सिडी छोड़ दो ,देश भक्त बनों, देश हित में काम करो। लेकिन सरकार और उसके मंत्री देश हित में कितना काम करते हैं। इस देश में सबसे ज्यादा सरकारी धनों का शोषण या दुरूपयोग राजनेता या ब्यूरोक्रेटेस कर रहे हैं। आप नजर घुमाकर देख लीजिये। जनता तो लोकतंत्र में मुलाजिम की तरह है। बस वोट के समय राजा बनती हैं या उल्लू यह आपको तय करना है। सोचिये कि हम ऐसा देश चाहते हैं या बदलता भारत।
भारत के कई राज्यों में बिजली की सुविधा नहीं है और किसी भी सरकार ने इस समस्या का निदान वचनबद्ध तरीके से नहीं किया, जिसका बाद में उदाहरण दिया जा सके। सड़क का भी यही हाल कुछ हद तक सफलता मिली है, लेकिन इस सफलता को पूर्ण कालिक नहीं कहा जा सकता। रोजगार और मकान की तो बात ही मत कीजिये। कुकुरमुत्ते की तरह निजी कंपनी खुल गई है, लेकिन श्रम कानून आज भी भगवान भरोसे ही चल रहा है। वेतन मिल गया तो अच्छा नहीं तो दूसरी कंपनी पकड़ लीजिए। फिर हम और आप कितने स्मार्ट हैं।
आज भी माल के लिफ्ट को चलाने के लिये कहा जाए तो लोग पैदल चलना ज्यादा पसंद करते हैं। जिस देश में मूल समस्याओं को निराकरण नहीं हो सका हो, वहां स्मार्ट सिटी क्या काम। स्मार्ट सिटी का नाम सुनते ही ऐसा लगता है कि सरकार जनता पर जबरदस्ती यह योजना थोपना चाहती है।
इस योजना के घोषणा के सालभर बाद इस ब्लाग को क्यों लिख रहा हूं। ऐसा आप सोचते होंगे। लेकिन शहर की खामियों से विगत दो चार दिन में ही चिरपरिचित हुआ हूं। भारी बारिश ने स्मार्ट सिटी की कहावत कुछ तरह बयां कर दी 'मिले मियां के मार नहीं पिये मियां ताड़ी'। मतलब यहां जनाव रहने का ठिकाना नहीं, बारिश अगर मूड में हो तो लोगों को ठिकाना ढूंढना पड़ता है। सरकार खुद नाले से तालाब के दृश्य को देखती है। आपका नाला ऐसा है, जो कचड़े को समाहित करने की जगह उगल देता हैं। ऐसे में आप स्मार्ट सिटी की खुद आप कल्पना कीजिए। नीचे पानी में सांप तैर रहा होगा और आप मोबाइल पर चैट करेंगे। ऐसा संभव नहीं या मोबाइल पर नगर निगम , बिजली विभाग को फोन करेंगे। यह भी संभव नहीं, सरकारी कर्मचारी इतना समझदार है कि मौके की नजाकत को भांप कर वह फोन ही डिस्कनेक्ट कर देता हैं या व्यस्त कर देता है। लो कर लो बात हो गए आप स्मार्ट।
स्मार्ट सिटी की कल्पना कई देशों ने अपने अपने तरीके सी की है, जहां पानी का जमाव न हो, मूल भूत सुविधा हो और फिर स्मार्ट व्यवस्था हो, लेकिन देश में एक भी चीजे में स्मार्ट व्यवस्था है। आप खुद सोचिए , सरकारी योजनाओं में सबसे पहले रेलवे आरक्षण को आनलाइन तैयार किया गया। आरक्षण आनलाइन हुआ लेकिन कितने को इसका लाभ मिलता है। लोग आज भी कंफर्म टिकिट के लिये दलाल के पास ही पहुंचते है।
सरकार अकसर आपको स्मार्ट बनाने की कोशिश में हैं। आपको कहती है स्मार्ट बनों, सब्सिडी छोड़ दो ,देश भक्त बनों, देश हित में काम करो। लेकिन सरकार और उसके मंत्री देश हित में कितना काम करते हैं। इस देश में सबसे ज्यादा सरकारी धनों का शोषण या दुरूपयोग राजनेता या ब्यूरोक्रेटेस कर रहे हैं। आप नजर घुमाकर देख लीजिये। जनता तो लोकतंत्र में मुलाजिम की तरह है। बस वोट के समय राजा बनती हैं या उल्लू यह आपको तय करना है। सोचिये कि हम ऐसा देश चाहते हैं या बदलता भारत।
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