त्वरित टिप्पणी सौरभ कुमार
भोपाल। केंद्र में मोदी कैबिनेट का विस्तार हो चुका हैं। विस्तार में यूपी और एमपी के तीन सांसदों को मंत्री के पद से नवाजा गया है। इससे पहले मप्र में शिवराज कैबिनेट के विस्तार के बहाने केंद्र के 75 पार फार्मूले से बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को इस्तीफा लेकर बाहर का रास्ता दिखा दिया। उस वक्त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह दलील दी थी कि पार्टी हाईकमान ने उम्र के 75 पड़ाव कर चुके विधायकों को मंत्री नहीं बनना चाहती। इसलिये इस्तीफा देना होगा। यह फार्मूला मोदी कैबिनेट विस्तार में न चला औऱ न दिखा। इस फार्मूले को लेकर राजनीति सलाहकारों का आकंलन था कि केंद्र के दो मंत्री नजमा हेपतुल्ला और कलराज मिश्र को हटाया जाएगा। ऐसा आकंलन था, मोदी कैबिनेट का विस्तार भी हुआ, लेकिन 75 पार के इस फार्मूले का कहीं उपयोग नहीं हुआ।
मप्र के अधिकांश मंत्रियों, जनसमर्थकों सहित अन्य नेताओं की निगाहें इस पर टिकी थी। लेकिन ऐसा कुछ भी न देखने को मिला और नहीं पार्टी हाईकमान के तरफ से इस पर कोई बयान जारी किया। जिन दो मंत्रियों से इस कारण से इस्तीफा लिया गया , वह अब अचंभित है। फिर आखिर क्यों इस्तीफा लिया गया, यानि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी हाईकमान के पाले में गेंद फेंककर इस्तीफा ले लिया। संघ का एक फार्मूला यह भी था कि दूसरे पार्टी से इस पार्टी में आनेवालों को तत्काल पद नहीं मिलेगा, शिवराज ने इस फार्मूले को भी तोड़ दिया। कांग्रेस से बीजेपी का दामन थामने वाले संजय पाठक मंत्री बन गए। संघ और सगंठन की कही जानेवाली बीजेपी पार्टी यहां भी नाराजगी से ज्यादा कुछ कर नहीं सकी।
आखिर क्यों हुआ ऐसा
शिवराज सिंह चौहान जब मुख्यमंत्री बने थे, तो राजनीति में नौसिखिए माने जाते थे। अपने प्रथम कार्यकाल में उन्होंने वहीं सब किया , जो पार्टी पदाधिकारी और हाईकमान चाहते थे। पहला साल मुख्यमंत्री ने पार्टी के लिये ही नहीं बल्कि ब्यूरोक्रेटेस के इशारे पर भी काम करते रहे। डंपर कांड के समय मुख्यमंत्री का पहला इंटरव्यू लेने का मौका मिला, तब उन्होंने इस कांड को लेकर जो बयान दिये थे, वह आज भी लोगों के दिमाग में भले ही नहीं हो, लेकिन मीडियाकर्मी के दिमाग में हैं। सीधा सरल और अपनी बात बेवाकी से रखने वाला पहला मुख्यमंत्री देखा था, जो डंपरकांड पर बोल रहा था। लेकिन समय के साथ शिवराज में भी परिपक्कता देखने को मिली। राजनीति कूटनीति से चलती है। अब शिवराज भी कूटनीति की एक परिपक्ता देखी जा सकती है। मप्र के बाहर जिस तरीके से कैलाश विजयवर्गीय को भेजा गया, साफ था कि मप्र की राजनीति में शिवराज का सिक्का चलेगा, यहां वहीं रह सकता है, जो उसकी धुरी बन सके। व्यापमं घोटाले से जिस तरीके से मप्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर चर्चा में लाया, उससे राजनीति के ज्योतिषियों को लगा कि शिवराज को इस्तीफा देना पड़ेगा,लेकिन यह आकंलन गलत साबित हुआ और मुख्यमंत्री ने अपने सामांतर खड़े होने वालों को पार्टी से बाहर ही नहीं राजनीति से भी दूर कर दिया। बाबूलाल गौर का इस्तीफा लोगों को समझ में आ भी जाता कि वो बयानों और अपनी हरकतों के कारण पार्टी की किरकिरी करा रहे थे, लेकिन सरताज सिंह के लिये क्या बहाना शिवराज देंगे। लोक निर्माण विभाग को सही तरीके से पटरी पर लाने में सरताज बेहतर काम कर रहे थे,तो फिर उनके साथ ऐसा क्यों हुआ। ई गर्वेंनेस और पार्टी में पारदर्शीता की बात करने वाले शिवराज ने इसमें पार्दर्शीता क्यों नहीं दिखाई। अब सवाल तो उठेंगे विरोध भी अपने तरीके से होगा, लेकिन शिवराज की मंशा क्या है, ये तो शिवराज और उनके सिपासलाहकार की जान सकते हैं।
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