Thursday, 14 July 2016

इंतज़ार कीजिये नजमा के मजमे का


मदारी के खेल में कुछ भी नया नहीं होता। वह मजमा जमाता है। उसमें वही होता है, जो सुना था। जो देखा है, और यकीनन, केवल वो, जो दिखने वाला है। राजनीति में भी यही होता है। कोशिशें।  बहुत कम पवित्र साधन के साथ। बहुत ज्यादा घोर अपवित्र तिकड़मों के साथ। पहले का नतीजा अक्सर असफल होता है। दूसरे का नतीजा अक्सर सफल। हताश कर देने वाले, आश्चर्यजनक रूप से, लेकिन अब चौंकाने का यह भाव सामान्य रूप ले चला है। इसलिए, यदि यकायक नजमा हेपतुल्ला अपने मंत्री पद से वीतरागी होने की मुद्रा में इस्तीफा देती हैं, तो इस मजमे में कुछ नया नहीं है। केवल कुछ खोजने के विषय हैं। खोज केवल ऐसी, जैसी किसी डॉक्टर के कहने पर कोई पैथोलॉजिस्ट किसी मरीज की बीमारी की खोज करता है।  डॉक्टर भी लक्षणों से बखूबी जानता है कि बीमारी क्या है और पैथोलॉजिस्ट। उसको तो यही इंतजार रहता है कि डॉक्टर की तरफ से अब ऐसा कौन आ रहा है, जिसकी बीमारी डॉक्टर भी जानता है, और वह खुद भी। अंत में पैथोलॉजिस्ट रिपोर्ट लिखता है। मरीज को फलाना बीमारी है। डॉक्टर वह रिपोर्ट यूं देखता है, जैसे वह पहली बार ऐसा कुछ देख रहा हो। फिर कहता है, आपकी हालत ठीक नहीं है। फला-फला चीजों से परहेज कीजिए।
खोज ये कि ऐसा क्या हो गया था कि चंद दिनों पहले ही मोदी मंत्रिमंडल के आशंकाओं से (75 प्लस के फॉर्मूल के चलते अपने लिए) भरे विस्तार में भी निरापद की श्रेणी में आ गईं नजमा हेपतुल्ला ने यकायक मंत्री पद को छोड़ दिया? (या उनसे यह छीना गया?)इसका जवाब शायद कल तक मिले, या जवाब के रूप मेें  केवल अटकलें हाथ लगें, लेकिन एक बात तय है, नजमा ने इस्तीफा अपने मन से तो नहीं ही दिया होगा। नजमा कांग्रेस में लम्बा समय गुजार चुकी हैं। वहां से सियासत का जो सबक उन्होंने सीखा, वह कम से कम उन्हें खुद-ब-खुद केंद्रीय मंत्री का पद छोडऩे की तालीम तो कतई नहीं देगा। बाद के वर्षों में भाजपा का एनडीए से मिलकर जो चरित्र हुआ, वह भी ऐसी कोई घटना का साक्षी नहीं बनता नजर आता। किसी भी नजमा के लिए नहीं। सवाल यह है कि नजमा के रूप में सामने आया यह सियासी मजमा क्या कह रहा है। जवाब भाजपा का कोई डॉक्टर देगा या पैथोलॉजिस्ट? इसके लिए इंतजार कीजिए, बहुत थोड़ा इंतजार...........

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