सिहंस्थ में कथित रूप से हुए भ्रष्टाचार के मंथन से कांग्रेस को विष हाथ लगा है। चाल, चरित्र और कैडर की पार्टी भाजपा ने अमृत पी ली है। इसलिये कांग्रेस में बौखलाहट , जो दिख रही हैं। मध्य प्रदेश में इन दिनों सांप भी मर जाए और लाठी नहीं टूटे। यह कहावत चरितार्थ है। मध्य प्रदेश कांग्रेस के पास सिहंस्थ घोटाले का मुद्दा था, विधानसभा के मानसून सत्र में कांग्रेस चाहती तो सरकार को पहले दिन से घेर सकती थी। अनुपूरक बजट पर चर्चा की जगह भ्रष्ट्राचार पर चर्चा करा सकती थी। लेकिन एक सोची समझी साजिश के तहत सत्ता पक्ष के साथ कांग्रेस ने हाथ मिलाकर जैसा सत्ता पक्ष ने चाहा वैसा ही किया। अंतिम दिन यानि मानसून सत्र के आखिरी दिन कांग्रेस ने सिहंस्थ में हुए भ्रष्टाचार को लेकर मुद्दा उठाया। सबको पता था कि सत्ता पक्ष ने विधेयक से लेकर बजट तक पास करवा लिया है और ऐसे में विपक्ष सदन की कार्रवाई को स्थगित भी कर देता है, तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसा ही हुआ। बीजेपी यानि सत्ता पक्ष और विपक्ष ने विधानसभा की कार्रवाई को लेकर पहले ही से स्किप्ट तैयार कर रखी थी। वैसे ही स्किप्ट पर सदन की कार्रवाई चलती रही। लोकतंत्र में विपक्ष कमजोर हो या सत्ता पक्ष उस पर हावी हो तो विपक्ष की जगह उसको सत्ता पक्ष ही मान लेना चाहिये। ठीक वैसा ही हुआ। मानसून सत्र की कार्रवाई चलती रही और विपक्ष ने अपनी भूमिका छोड़ सत्ता पक्ष के काम को आगे बढ़ाया। इधर कांग्रेस के महासचिव ने जब देखा कि ऐसे में कांग्रेस की नाव पूर्ण रूप से डूब जाएगी, तो उन्होंने कांग्रेस के चंद विधायकों को जगाने के लिये टिविटर का सहारा लिया। दिग्गी के टिविट के बाद खलबली कांग्रेस के अंदर मच गई। कांग्रेसियों को लगा कि आला कमान की नजर उन पर है और सत्ता पक्ष के साथ गठजोड़ का खेल बंद करके अपने आपको पाक साबित किया जाए, इसके लिये उन्होंने विधानसभा सत्र के अंतिम दिन को चुना। जब सत्ता पक्ष को उनकी जरूरत ही नहीं थी। सदन में आखिरी दिन कांग्रेस विधायक ऐसे चीखने लगे, जैसे मानों सिहंस्थ अभी खत्म हुआ हो। सदन की कार्रवाई के तीन घंटे में ऐसे लगा कि कांग्रेस विधायकों ने आज कौन सा एनर्जी ड्रिंक पी लिया है। सिहंस्थ भ्रष्ट्राचार पर सरकार को घेरना और सदन की कार्रवाई स्थगित होने से पहले ही सोशल मीडिया के कई ग्रुपों में प्रेस कांफ्रेस को लेकर मैसेज आ गया कि साढ़े चार बजे अरूण यादव, बाला बच्चन और रामनिवास राउत सिहंस्थ घोटाले पर पीसी लेंगे। जबकि कांग्रेसियों को छोड़कर किसी को पता नहीं था कि सदन चार बजे से पहले ही स्थगित हो जाएगी। ठीक वैसा ही हुआ। तीन बजे के बाद सदन की कार्रवाई अनिश्चितकालीन के लिये स्थगित हो गई। कांग्रेस ने साढ़े चार बजे पीसी बुलाई। सिहंस्थ के कथित घोटाले पर सत्ता पक्ष पर आरोपों की बरसात कर दी। सदन में जब मुद्दा उठाने की बात सवाल जवाब हुए तो अपने आपको पाक साफ करके सत्ता पक्ष के नेता नरोत्तम मिश्रा का दवाब बताया, लेकिन यह नहीं बताया कि कांग्रेस के किस कारनामे को लेकर मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दवाब बनाया था। यहां भी उनकी स्किप्ट आधी अधूरी थी। प्रेस कांफ्रेंस के अंतिम समय में उपनेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन को बेकसूर बताया और प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव ने यहां तक कहा कि हमने कोई आरोप नहीं लगाए। यादव यह बात कहकर खुद फंस गए, दिग्गी के टिविट के बाद बाला बच्चन का नाम उछला था। फिर प्रदेशाध्यक्ष यादव ने टिप्पणी क्यों की। इस पर दिग्गी को ही टिविट करना था। क्योंकि उनके टिविट से ही आरोप लगा था।
छोड़िये इस कमजोर विपक्ष को। जो सैकड़ों के आंकड़ों को भी पार नहीं कर सकी, वह क्या जनता के लिये लड़ेगी। सिहंस्थ के दौरान घोटालों पर कई कमेंट्स आए थे, आपको याद होगा, नहीं है, तो थोड़ फ्लैश बैक में दिमाग को ले चलिये। कैलाश विजयवर्गी और भूपेंद्र सिंह ने यहां तक कहा था कि महाकाल की नगरी है, जो भ्रष्ट्राचार करेगा, उसको महाकाल की तीसरी आंख भष्म कर देगी। कुछ ऐसा ही कमेंट्स छाया था मीडिया के बाजार में। कुछ लोगों को अब समझ में आ गया होगा कि यह ईशारा किसकी ओर था। क्यों इस तरह के कमेंट्स दिये गए थे।
अब बात करें शिवराज सिंह चौहान की। उनके दामन में विपक्ष ने फिर दाग लगा दिये। अब भाई दाग अच्छे हो या खराब। उसको धोना ही पड़ता है। महाकाल की नगरी में भ्रष्टाचार हुए है, इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फिर एक रिश्तेदार का नाम सामने आया हैं। मुख्यमंत्री अकसर इंटरव्यू के दौरान कहते है कि मेरे रिश्तेदार अगर व्यवसाय में हैं, तो मैं उनको व्यवसाय बंद करने के लिये नहीं कह सकता। वो अपना बिजनेस कर रहे हैं और करें। मुख्यमंत्री महोदय आपकी तर्क जायज हैं, लेकिन इतना तो जनता जरूर कहेगी कि यह भी जरूर नहीं कि आपके रिश्तेदारों की दाग शिवराज ही धोएं। व्यापार के लिये पूरी दुनिया पड़ी है, आपके आस- पास ही क्यों।