मध्य प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा लगातार चुनाव आयोग के निर्णय को लेकर कोर्ट दर कोर्ट संघर्ष कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है, राजनीति में नरोत्तम मिश्रा जनता की सेवा के लिये नहीं बल्कि अपना कैरियर बनाने आए थे। पद का इतना मोह और नैतिकता खत्म होते मैंने राजनीति में देखा है। पहले आरोप लगने पर ही इस्तीफा देकर जनता के सेवक जनता के बीच जाकर सेवा में जुट जाते थे। लेकिन अब आरोप , जांच और फिर फैसला होने के बाद भी बेशर्मों की तरह पद पर बने रहते है। जब तक पार्टी हाईकमान धक्का देकर बाहर नहीं कर दें। आखिर क्यों?
एक पत्रकार होने के नाते जब भी नेता का इंटरव्यू लीजिये तो यहीं कहेंगे जनता की सेवा के लिये राजनीति में आए है। जनता की सेवा के लिये राजनीति में आने की क्या जरूरत है आप एनजीओ या बिना एनजीओ के भी जनता की सेवा कर सकते हैं। नेताओं को कहना चाहिये कि जनता के अधिकार , विकास और बदलाव के लिये राजनीति में आए है, लेकिन कभी प्रशासनिक अधिकारियों ने इस तरह का ज्ञान नेताओं को नहीं दिया। इसका यही नतीजा है कि जनता की सेवा के नाम पर खुद की सेवा हो रही है। चुनाव से पहले दी जाने वाली संपत्ति का आंकड़ा खुद बता देता है कि नेताजी ने कितनी संपर्ति बनाकर उधोगपतियों को पछाड़ दिया है। भारत में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण जरूरत से ज्यादा धन की जमापूंजि है। आप जब तक इस पर रोक नहीं लगाएंगे तब सबकुछ समेटने की प्रवृति इस देश में खत्म नहीं होगी। जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा को चाहिये कि पार्टी को खुद इस्तीफा देकर कानूनी लड़ाई लडे़। लेकिन नरोत्तम मिश्रा जानते है कि कानूनी लड़ाई जीत भी गए तो पार्टी दोबारा मौका नहीं देगी। इसलिये पद पर बने रहकर संघर्ष करने में ही भलाई है।
मप्र के राजनीति में खास बात यह रही कि शिवराज पर संकट लाने वालों की राजनीति कैरियर ही खत्म हो गई। शिवराज के सिपालाहाकरों ने हमेशा से उन्हें सुरक्षित रखा है। मप्र में अगला मुख्यमंत्री बीजेपी के तरफ से कौन होगा.... यह तय नहीं है या यू कह लीजिये कि कोई भी नहीं। यहीं गलती कांग्रेस के साथ भी हुई थी। दिग्गी के बाद प्रदेश में कोई नेता ऐसा नहीं था जो जनता के बीच जाकर वोट मांग सके, या जिसे जनता पसंद करती हो। आज नतीजा यह है कि कांग्रेस के पास विपक्ष नेता तक नहीं। जैसे तैसे कांग्रेस अपने आपको जिंदा रखी हुई है। अगर जनता ने कांग्रेस को मौका भी दिया तो मुख्यमंत्री कौन होगा इसका किसी को पता नहीं। जब मुख्यमंत्री का पता नहीं तो वोट नहीं । वहीं हाल बीजेपी का भी होने वाला है। भारतीय राजनीति को जनता सबको मौका देती है। अगर कांग्रेस को मौका मिला तो बीजेपी को फिर से बुरे दौर से गुजरना होगा। मध्य प्रदेश में पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
रही बात जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा कि तो उन्हें इस्तीफा देकर जनता के बीच सेवक के रूप में जाना चाहिये। उनके अपने वरिष्ठ नेता ध्रुव नारायण सिंह से कुछ सीखना चाहिये। पार्टी हाईकमान के इशारे पर आज भी ध्रुव नारायण सिंह चल रहे है। पार्टी ने जो काम दिया वहीं किया। आज भी जनता के लिये दरबार लगता है औऱ समस्याओं का निदान होता है। भोपाल में ध्रुव नारायण सिंह ने अपनी अलग पहचान बनाई हुई है और इतने आरोप लगने के बाद भी अपने आपको राजनीति में जिंदा किये हुए है। यहीं काम नरोत्तम मिश्रा को भी करना चाहिये , जिससे कि एक अच्छा मैसेज राजनीति में जाए।
एक पत्रकार होने के नाते जब भी नेता का इंटरव्यू लीजिये तो यहीं कहेंगे जनता की सेवा के लिये राजनीति में आए है। जनता की सेवा के लिये राजनीति में आने की क्या जरूरत है आप एनजीओ या बिना एनजीओ के भी जनता की सेवा कर सकते हैं। नेताओं को कहना चाहिये कि जनता के अधिकार , विकास और बदलाव के लिये राजनीति में आए है, लेकिन कभी प्रशासनिक अधिकारियों ने इस तरह का ज्ञान नेताओं को नहीं दिया। इसका यही नतीजा है कि जनता की सेवा के नाम पर खुद की सेवा हो रही है। चुनाव से पहले दी जाने वाली संपत्ति का आंकड़ा खुद बता देता है कि नेताजी ने कितनी संपर्ति बनाकर उधोगपतियों को पछाड़ दिया है। भारत में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण जरूरत से ज्यादा धन की जमापूंजि है। आप जब तक इस पर रोक नहीं लगाएंगे तब सबकुछ समेटने की प्रवृति इस देश में खत्म नहीं होगी। जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा को चाहिये कि पार्टी को खुद इस्तीफा देकर कानूनी लड़ाई लडे़। लेकिन नरोत्तम मिश्रा जानते है कि कानूनी लड़ाई जीत भी गए तो पार्टी दोबारा मौका नहीं देगी। इसलिये पद पर बने रहकर संघर्ष करने में ही भलाई है।
मप्र के राजनीति में खास बात यह रही कि शिवराज पर संकट लाने वालों की राजनीति कैरियर ही खत्म हो गई। शिवराज के सिपालाहाकरों ने हमेशा से उन्हें सुरक्षित रखा है। मप्र में अगला मुख्यमंत्री बीजेपी के तरफ से कौन होगा.... यह तय नहीं है या यू कह लीजिये कि कोई भी नहीं। यहीं गलती कांग्रेस के साथ भी हुई थी। दिग्गी के बाद प्रदेश में कोई नेता ऐसा नहीं था जो जनता के बीच जाकर वोट मांग सके, या जिसे जनता पसंद करती हो। आज नतीजा यह है कि कांग्रेस के पास विपक्ष नेता तक नहीं। जैसे तैसे कांग्रेस अपने आपको जिंदा रखी हुई है। अगर जनता ने कांग्रेस को मौका भी दिया तो मुख्यमंत्री कौन होगा इसका किसी को पता नहीं। जब मुख्यमंत्री का पता नहीं तो वोट नहीं । वहीं हाल बीजेपी का भी होने वाला है। भारतीय राजनीति को जनता सबको मौका देती है। अगर कांग्रेस को मौका मिला तो बीजेपी को फिर से बुरे दौर से गुजरना होगा। मध्य प्रदेश में पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
रही बात जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा कि तो उन्हें इस्तीफा देकर जनता के बीच सेवक के रूप में जाना चाहिये। उनके अपने वरिष्ठ नेता ध्रुव नारायण सिंह से कुछ सीखना चाहिये। पार्टी हाईकमान के इशारे पर आज भी ध्रुव नारायण सिंह चल रहे है। पार्टी ने जो काम दिया वहीं किया। आज भी जनता के लिये दरबार लगता है औऱ समस्याओं का निदान होता है। भोपाल में ध्रुव नारायण सिंह ने अपनी अलग पहचान बनाई हुई है और इतने आरोप लगने के बाद भी अपने आपको राजनीति में जिंदा किये हुए है। यहीं काम नरोत्तम मिश्रा को भी करना चाहिये , जिससे कि एक अच्छा मैसेज राजनीति में जाए।
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