Tuesday, 11 July 2017

जल्दी में नरोत्तम, आराम से न्यायपालिका

 चुनाव आयोग का डंडा मप्र के जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा पर उस समय पड़ा , जब वो अपने राजनीतिक कैरियर में सबसे मजबूत स्थिति में है। कभी शिवराज के संकटमोचक कहे जाने वाले नरोत्तम मिश्रा ने ऐसा नहीं सोचा होगा कि उनकी राजनीतिक कैरियर पर इतना बड़ा संकट आ जाएगा। हालांकि यह मामला पहले से आयोग के पास लंबित था। चुनाव आयोग ने इस पर निर्णय तब लिया जब पूरी सरकार किसान आंदोलन से संकट में थी।
 एक निजी चैनल ने शिवराज के उपवास का इस तरह उपहास उड़ाया और उस चैनल ने जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा के इस उपवास पर बयान भी सुनाया। इसके बाद ही जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा की उल्टी गिनती शुरू हो गई। अपनी छवि के अनुरूप शिवराज के लिये कुछ करने की गुरेज ने नरोत्तम के पाशा को उल्टा कर दिया। चुनाव आयोग के आदेश के बाद जनसंपर्क मंत्री ने कानून जानकार और सलाहकारों पर पैसा खूब खर्च किया। इस पूरी घटना से आप समझ सकते है कि न्याय पाने के लिये जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा को कितनी जल्दी है। लेकिन न्यायपालिका के लिये मंत्री क्या और संत्री क्या। जबकि एक समय नरोत्तम मिश्रा के पास विधि विभाग का भी कमान रहा है। फिर भी मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा चुका है। गौरतलब है कि देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति के चयन को लेकर 17 जुलाई को वोटिंग होना है और इसका हवाला देते हुए नरोत्तम मिश्रा कानून फैसला भी जल्दी चाहते है। या आने वाले दिनों में उनकी परेशानी बढ़ने वाली है। इसको लेकर भी फैसला जल्द हो तो ज्यादा अच्छा है।
 संघर्ष के दौर में नरोत्तम मिश्रा ने कभी भी हार नहीं मानी। यह उनकी आदत में शुमार है, इसलिये भारतीय राजनीति को बेहतर समझ और कूटनीति का उपयोग करते हुए कम समय में बड़ा मुकाम बनाने में कामयाब रहे। आज भी चुनाव आयोग के फैसले को चुनौति देकर विजयी पाने की पूरी तैयारी कर चुके है।
विकल्प तो कई है लेकिन जनसंपर्क मंत्री इसको जीतकर फिर विधानसभा के सदन में वापस आना चाहते हैं। वहीं विपक्ष पूरी तरह से नरोत्तम मिश्रा को सदन से बाहर रखने के मूड में हैं। उनकी विधायकी खतरे में है,लेकिन नरोत्तम मिश्रा दिल के इतने बड़े है कि विपक्ष के नेताओं को हमेशा सहयोग ही किया। दुर्भावना में आकर कभी भी किसी पर कार्रवाई नहीं होने दी। शायद यहीं राजनीति कभी आपका नंबर है तो कभी मेरा। अब तो पक्ष और विपक्ष में ज्यादा अंतर नहीं रह गया। दोनों मिलकर देश को कम राजनीति दिशा में विरोध भर रहे है। पता नहीं यह विऱोध सत्ता पक्ष क्यों दिखा रहा है। निंदा और परिनंदा तो सोशल साइटस पर ऐसे छाया हुआ है, जैसे उनके फालोअर्स से ही चुनावी जीत तय होनी है। लोकतंत्र में जनता अब सोशल साइटस हो गई है। फेसबुक लाइव और टिविटर लाइव से ही देश की जनता को जुड़ रहे हैं। अच्छा ऐसे में पेड न्यूज की समस्या नहीं रहेगी।

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