जब आप एशियन देशों के भ्रमण पर निकलेंगे तो कई देशों के भ्रमण के बाद आपका भ्रम टूट जाएगा और सोच में पड़ जाएंगे क्या भारत सही में एशियन देशों में सबसे समृध्द और बेहतर देश हैं। बेहतर देश कहने का यह तात्पर्य है कि क्या भारतीन नागरिक के अधिकारों के लिये सरकार सजग है ? ये अधिकार दिये जा रहे हैं या फिर उन अधिकारों को भारत सरकार लागू नहीं कर सकी है। आर्थिक रूप से अगर एशियन देशों के साथ हम इसकी तुलना करें, तो भारत को पिछड़ा देश आप मानेंगे। तीन घंटे की हवाई यात्रा का सफर कर अगर आप पड़ोसी देश थाईलैंड भी पहुंचेंगे तो आपकी करेंसी पिछड़ जाएगी और रूपया आधा हो जाएगा। जबकि थाईलैंड की आर्थिक स्थिति का अध्ययन करेंगे तो थाईलैंड को सबसे ज्यादा रेवन्यू टूरिज्म से मिलता है और टूरिज्म व्यापार को उन्होंने यूरोपीय लोगों को ध्यान में रखकर विकसित किया है। यही ंस्थिति आपको आपके पड़ोसी मूलक चाइना में देखने को मिलेगा।
चाइना के विकास का मुख्य कारण यूएस है। जब भारत रूस के दम पर हथियार खरीद रहा था, तब भारत को सिर्फ सुरक्षा के लिये हथियार दिये गए मगर रूस ने कभी विकास भारत को नहीं दिया। जबकि चाइना शुरू से ही अमेरिका का पिछलगू था और वह हथियार के अलावा यूरिपोयिन विकास को भी अपने देश में लाने में सफल हो गए। जबकि भारत ऐसा नहीं कर सका।
वहीं नागरिक के अधिकारों की बात करें, तो भारत के नागरिक आज भी मूल अधिकारोंं के लिये संघर्ष क रही है..जैसे रोजगार...नागरिक सुरक्षा बीमा... बेरोजगारी भत्ता, आवास , भोजन जैसी अहम मुद्दा है और इन सब चुनौतियों के बावदजूद इंसानी जरूरतों को छोड़ देश में हिंदूत्व, गौ सरंक्षण जैसे मुद्दे पर जोरदार तरीके से काम हो रहा है। अब आप सोचिये कि इस देश का विकास कैसे होगा।
हम अकसर चीन को धमकी देते है कि चाइना समान खरीदना बंद कर दें, लेकिन भारतीय बाजार के अलावा सरकारी बाजार में भी दखल दे चुका हैं। भारत के सरकारी प्रोजेक्टों में चीन का अहम योगदान है और उस पर कार्य कर रहा है। बात करें उत्पादन और निर्माण को लेकर करेंगे तो भारत अभी काफी पिछे हैं, यूरोप की मुख्य कंपनियां चीन में निर्माण उत्पादन पर पैर जमाए हुए है। वहीं यूके जो हमेशा से भारत का खास दोस्त माना जाता रहा है, जो कभी हमारा शोषण किया था, उसकी डिजनी लैंड जैसी बड़ी कंपनियां भी चीनी बाजार में पहुंच गई है और लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रही है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत में बीजेपी की सरकार बनने के बाद क्या हम मुख्य मुद्दे से भटक चुके हैं। भारत अब भी अपने आप में संघर्ष कर रहा है।
बाजारवाद में अगर भारत विकास कर रहा है तो यहीं किसी सरकार की देन नहीं है, क्योंकि बाजार की तलाश में कई कंपनियां भारत आ रही है। उसको कोई भी राजनीति पार्टी श्रेय न लें तो बेहतर होगा। बाजारवाद में जो प्रतियोगिता है, वो अंतिम आदमी को सुविधा देने की बात करता है, जिससे कि उससे रेवन्यू अर्जित किया जा सके। जो पहले पहुंचेगा वहीं ज्यादा रेवन्यू कमा सकेगा।
एशियाई देशों में श्रीलंका पाकिस्तान और छोटे देशों को छोड़ दे तो अभी हमें संघर्ष करना है। चाइना से बेहतर और मजबूत बनने के लिये हमें विकास, तकनीकि औऱ नागरिकों की सुविधा पर विशेष ध्यान देना होगा। यूरोपीयन देशों का भ्रमण करने के बाद भारतीय नेताओं को उसे विकास को बाजारवाद के रूप में नहीं, बल्कि नागरिक सुविधा के आधार पर लाना होगा।तभी भारतीय दमदारी साबित हो सकेगी।
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