Tuesday, 19 September 2017

'जापानी बुलेट का विरोध, जापानी तेल ...'

जापानी बुलेट ट्रेन का विरोध टीवी से लेकर आम लोग कर रहे है..टीवी पर आपको जापानी ट्रेन की विफलता के कई कारण गिनाएं जाएंगे...यहां तक कहा जा रहा है कि जब यूरोपीय देश बुलेट ट्रेन का उपयोग नहीं कर रहा तो हम क्यों करें। कई राजनीतिक पार्टी इसके टिकिट के आंकलन में जुटी है, कि इसका किराया कितना होगा। बुलेट ट्रेन के फायदे और नुकसान की राजनीति देश में हो रही है...इसी बीच इसका शिलान्यास हुआ और कांग्रेस की इस योजना का श्रेय बीजेपी लेकर चली गई ...जैसे कि जीएसटी... सहित अन्य योजनाओं को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर लिया गया। अकसर कॉपी पेस्ट करने वाला आदमी इस तरह की चोरी बड़े ही चालाकी से करता है। 
अब बात जापान की बुलेट ट्रेन का। भारतीय ट्रेन इसके आगे कुछ भी नहीं है...लेकिन भारतीय ट्रेन में मैनेजमेंट की बेहतर जरूरी है..यहां जिम्मेदारी तय नहीं किये जाने के कारण ट्रेन पटरी से उतर जाती है। फिर भी अच्छे सपने का हक आम से लेकर खास तक को है। जापानी ट्रेन से भी हमें बेहद उम्मीद है। भारतीय यात्रियों को इससे बेहद उम्मीद है। ज्यादा पैसा देकर कम समय में मंजिल तक पहुंचा देगी। इससे रोजगार विकास को गति मिलेगी। ऐसी बात मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक में हो रही है....आंकलन करने का अपना अपना आयाम है। 
जापानी बुलेट ट्रेन के इतने सारे नकारात्मक पहलुओं को सुनने के बाद मैंने सोचा कि जापानी तेल पर कभी लोगों ने इतना नहीं इस देश में बोला होगा। अगर आप जापानी तेल से वाकिफ नहीं हो तो आप भारत के सभी रेलवे स्टेशन पर इसका विज्ञापन देखे जरूर होंगे अगर नहीं देखें तो जाकर मेडिकल की दुकान में पूछ लीजिएगा। ध्यान रखिएगा कि मेडिकल का दुकान मोहल्ले या किसी पहचान का नहीं हो अऩ्यथा अकारण ही आपको बहुत कुछ भगोना होंगे। 
   इस तेल की सफलता औऱ विफलता को लेकर कोई बात नहीं करता, जबकि इसके उपयोग करने वालों को इस बारे में बोलना चाहिये। लेकिन यहां पर लोगों को बोलने की आजादी में कमी आ जाती है। फिर भी इसका व्यापार जबरदस्त है और खास बात यह है कि इसे बनाने वाली कंपनी भारत की है और यह एक जुमले की तरह जिसमें जापानी तेल की बात कही जाती है। विश्व बाजार में जापान की पहचान एक मजबूत और टिकाऊ चीजों के लिये रही है। चाहे इलेक्ट्रानिक आइटम हो या इंसान। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि उसके बाजार में चाइना ने बर्बाद कर दिया। फिर भी आज भी इलेक्ट्रानिक दुकान पर एक बार लोग चाइना या जापान मेड पर लोग पूछते जरूर है। मतलब जापानी बुलेट ट्रेन भी आपको टिकाऊ ही मिलेगी लेकिन भारत में आने के बाद और भ्रष्ट्राचार होने के बाद इसकी हालत भी जापानी तेल की तरह हो जाए...इसकी गारंटी आप ले सकते हो...क्योंकि फुसी बम की कोई गारंटी इस देश में नहीं लेता है। क्योंकि यहां बहरी सरकार , कोर्ट को आम लोगों को छोड़कर कुछ नहीं दिखता। 

Saturday, 9 September 2017

मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे.....इसी बहाने कई मुसाफिर मेरे पास आएंगे...


मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे....मेरे बाद तुम्हें मेरी याद दिलाने आएंगे...थोड़ी आच बची रहने दो थोड़ा धुआं निकलने दो...कल देखों कई मुसाफिर इस बहाने आएंगे...। एक शायर की जिसके शेर नेताओं के तकरीरों में जान फूंकते रहे...नेता तो सड़क से उठकर संसद तक  पहुंच गए मगर शायर पीछे छूट गया... अगर इस मलवे की जगह दीवारें खड़ी होती और घर पर दरवाजा होता तो इसका पता होता उनहत्तर बटे आठ। साउथ टीटी नगर स्थित यह मकान मलवे में तब्दील हो चुका है। यह वहीं सरकारी मकान है जो दुष्यंत कुमार के घर के रूप में पहचाना जाता था। विकास की आंधी में दुष्यंत का घर मलवे में तब्दील हो चुका है और बस अब बचा है तो उनकी यादों जो कि दुष्यंत संग्राहालय में कैद है और उसको भी खाली करने का नोटिस दिया जा चुका है। वो भी संग्राहालय अपने होने का अंतिम मियादी गिन रहा है। 
दुष्यंत की यह कविता इमरजेंसी के वक्त लिखा था " मत कहो कि आकाश में कोहरा घना है ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है। सूर्य हमने भी नही देखा सुबह से, क्या करोगे सूर्य का क्या देखना है,,, या फिर " वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिये,,,, या ये साफगोई कि " हमको पता नहीं था हमें अब पता चला, इस मुल्क में हमारी हुकुमत नहीं रही,,, और फिर वो लाइनें जिनके बिना नेताओं की तकरीर पूरी नहीं होती  " कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो,,, या अरविंद केजरीवाल की पसंदीदा लाइन  "मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये,,, दुष्यंत  जी की लिखी ऐसी कितनी लाइनें हैं जो ऐसा लगता है कल ही बैठकर आज के लिये ही लिखी गयी हैं। और वो लाइनें इन कमरों में ही बैठकर लिखीं गयी होगी। क्या विचार चलते होगे कवि के मन में कैसे वो उनको कागजों पर इस छत के नीचे बैठकर कागजों पर उतारता होगा और क्या उन्होनें कभी सोचा होगा कि कागजों पर उनकी लिखी लाइनें लोगों के दिलों में लिख ली जायेंगी और जुबान पर मोके बेमोके पर जुबान आ जायेंगी।

 वो सुंदर सी दुष्यंत  कुमार लिखी नेम प्लेट आलोक भाई के हाथों में है जो वो दुष्यंत  कुमार संग्रहालय के संचालक राजुरकर राज को देने के लिये लाये हैं। ये सब कब हुआ। बस कुछ दिन पहले ही हमें नोटिस मिला कि स्मार्ट सिटी में आपका मकान आ रहा है सामान समेट लीजिये। आनन फानन में हमने सामान समेटा और अगले ही दिन इसे समतल कर दिया गया। शायद बहुत जल्दी में हैं स्मार्ट सिटी वाले। हम ये भी नहीं बता पाये कि ये मकान तो दुष्यंत जी की पत्नी राजेश्वरी जी को सरकार ने जीवन पर्यंत के लिए दिया वो अभी मेरे साथ हैं उनको अभी हमने बताया नहीं है कि मकान टूट गया है हांलाकि मालुम पडेगा तो नहीं मालुम वो कैसे व्यक्त करेंगी। क्योंकि हम इस मकान में तकरीबन पचास साल रहे। यहीं बैठकर पिताजी ने अपनी सारी गजलें लिखीं। यहीं पर साहित्यकारों का जमघट लगा रहता था। इस घर सिर्फ लेखन से  जुडे लोग ही नहीं वो सारे लोग भी आते थे जो अलग अलग तरीके से जरूरतमंद होते थे उनको पता था कि पापा की बात बडे अफसर सुन लेते हैं। तभी वहां खडे वरिष्ट साहित्यकार राजेन्द्र शर्मा जी ने किस्सा सुनाया कि बालकवि बैरागी जब दष्यंत जी के निधन की खबर सुनकर यहां आये तो बताया कि बाहर उनको लाने वाला आटो चालक भी रो रहा है क्योंकि दुष्यंत जी की सिफारिश पर उसको आटो मिला था। भरे गले से आलोक कहते हैं ये मकान का टूटना उनके लिये छत और दीवार का मसला नहीं है बल्कि ये भावनात्मक दुख है हमारे और दुष्यंत जी के चाहने वालों के लिये। वो कहते हैं हैरानी इस बात पर ज्यादा होती है कि इमरजेंसी में वो लोग जो जेल में बंद थे और आज लोकतंत्र के सेनानी कहलाकर मोटी पेंशन पा रहे है उनकी आवाज ही तो थे पापा और आज यही लोग सत्ता में है मगर किसी ने भी इस घर परिवार की सुध नहीं ली। अरे ये मार्डन स्कूल है यहीं पर मेरी मां पढाती थी और सीएम शिवराज जी उनके विदयार्थी रहे हैं। खैर ये मकान तो विकास की आड मे टूट गया मगर थोडी दूर पर ही बने दुष्यंत कुमार स्मृति संग्रहालय को अब बचा लिया जाये क्योंकी  उसे भी बेदखली का नोटिस मिल गया है। दुप्यंत कुमार जी के घर का मलबा शिकायती लहजे में हमें मुंह चिढा रहा था और शायद यही कह रहा था ,,,खंडहर बचे हुये हैं इमारत नहीं रही, अच्छा हुआ सर पे कोई छत नहीं रही। हमने ताउम्र अकेले सफर किया हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही।।,,,



Friday, 1 September 2017

आओं तुम्हें खूबसूरत बना दूं: जिस्मफरोशी धंधा या मजबूरी



आजकल शहर में स्पा का प्रचलन तेजी से बढ़ा है या इसको कहें बैकांक जाने के लिये घंटों की दूरी का लोग अब इंतजार भी नहीं करना चाहते। डिजीटल औऱ न्यू इंडिया में सबकुछ तेजी से बदल रहा है। ऐसा दावा में नहीं सत्ताधारी सरकार कर रही है..इसलिये बैकांक की थाई मसाज आपके शहर में है। इसको आप विकास से जोड़ लीजिए या बेरोजगारी दूर करने के नयाब तरीके से। इसके विकास कुछ इस तरीके से हुआ सैलून... पार्लर ...मैंस पार्लर या पुरूष पार्लर कहिये..और अंत में यूनिसेक्स पार्लर....के बाद स्पा। 
  मध्य प्रदेश में निर्धारित आंकड़ा के अनुसार 1233 स्पा सेंटर हैं। भोपाल में इसका आंकड़ा कम है, लेकिन इंदौर में 220 स्पा सेंटर हैं। इन स्पाओं के प्रचार पर नजर डालेंगे तो मुझे एक पंच लाइन बेहद अच्छा लगा।"आओं मैं तुम्हें खूबसूरत बना दूं" यूनिसेक्स पार्लर में खूबसूरत शब्द का उपयोग मेल और फीमेल दोनो के लिये है। इसलिये भाषा पर मत जाए। इन दिनों चर्चा में स्पा सेंटर है। वो सुकून और शांति की तलाश में स्पा पहुंच रहे है या स्पा की आड़ में जिस्मफरोशी चल रही है। विकास जिस्मफरोशी का भी हुआ। तवायफ से स्पा सेंटर तक का सफर मजबूरी से धंधा बना दिया या कब बन गया किसी को पता ही नहीं चला।
 हाल ही में शहर के स्पा सेंटर पर पुलिस की कार्रवाई हुई है। शरीर को खूबसूरत बना देने वाली बालाएं जेल पहुंच गई। एक पत्रकार होने के नाते इच्छा हुई एक इंटरव्यू इन बालाओं का भी किया जाए लेकिन गिरफ्तारी के बाद कौन इंटरव्यू देता है। लेकिन पुलिस के सहयोग से कुछ घर का पता मिल गया। फिर क्या था। मैं उनके घर पर चला गया। मुझे नहीं पता था कि घरवालों को ज्यादा कुछ नहीं पता है। 
 पुराने भोपाल की तंग गलियों के एक तंग घर में पहुंचा, जिसकी एक दीवार अभी ही बनी थी। घर बहुत छोटा था , लेकिन घर देखकर उस घर की जीडीपी क्या होगी। इसका अंदाजा लगाया जा सकता। दरवाजे पर दस्तक हुई दरवाजा खुला तो एक महिला निकली। जिसकी उम्र 40 के आस पास होगी। मैंने परिचय दिया तो घर के अंदर बुला लिया। कमरा चार बाई चार का होगा उसमें परिवार के सदस्य पांच।जिसमें एक जेल में हैं। बातों की सिलसिला शुरू हुआ तो उसकी मां रोने लगी। उसकी मां को तो यह पता ही नहीं था कि उसकी बेटी स्पा में काम करती है। वह तो खबर नहीं छपने तक यह जानती थी कि उसकी बेटी प्रापर्टी डीलर का काम करती है। कुछ दिनों से न फोन आया और न वो। तो मां ने पता किया तो पूरी घटना सामने आई। मां की हिम्मत नहीं हुई कि जमानत के लिये किसी को कहा जाए। उस महिला ने बताया कि पति शराबी है और घर का खर्चा तक नहीं चलता। दिन रात शराब पीता है। पति दिन के समय भी शराब के नशे में था। बीच बीच में उसकी आवाज यह बता रही थी। बेटी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है, लेकिन खूबसूरत है और दूसरों को भी खूबसूरत बनाने की तमन्ना रखती है।इसलिये प्रापर्टी डीलर के यहां नौकरी कर ली और सैलेरी के अलावा प्रतिदिन कमिशन मिलता था। मां की बात सुनकर, मैं समझ गया कि कमिशन कहां से मिल रहा है। नोटबंदी के बाद किसने घर खरीदा है यहां तो नौकरी खतरे में है। उसकी मां ने दीवार की ओर ईशारा करते हुए कहा कि यह दीवार उसी के पैसे से बना है। परिवार में यहीं एक लड़की है जो कमा कर मां और दोनों भाई को पेट पालती ही नहीं बेहतर तरीके से रख रही थी। हमें सच्चाई पता नहीं थी वह बाद में चली। पिता को कोई मतलब नहीं है। हम क्या करें। मुझे कुछ पता नहीं है और ईश्वर ही कुछ रहम करें।उसके मां की बात सुनकर मुझे लगा कि दर्द को ज्यादा खरोदने से कोई मतलब नहीं है।
मैं वहां से आगे निकला। यह भी पुराने भोपाल का एक हिस्सा था। पिता ऑटो चालक है लेकिन खांसी और बीमारी ने उनको बेरोजगार कर दिया है। परिवार मुस्लिम है। जहां सबकुछ कुरान के हिसाब से अवैध है। बड़ी बहन जिसकी शादी हो चुकी है। एक भाई, एक बहन और मां -पिता इसके पालन पोषण की जिम्मेदारी उस लड़की के कंधे पर है, जिसने दसवीं पास किया है। अंग्रेजी बोल लेती है। बड़ी को बहन को सबकुछ पता है। उसने बताया कि स्पा का उसने ट्रेनिंग लिया था। उसके बाद शहर के हर छोटे बड़े स्पा में काम किया। शुरूआती दौर में उसे वेतन के रूप में आठ हजार रूपए मिलता था लेकिन आमदनी या टिप्स अच्छी होती थी। अनुभव बढ़ने के बाद वेतन 13 हजार तक पहुंच गया। शारीरिक दृष्टिकोण से बेहतर थी औऱ उसका चेहरा फिल्म अदाकरा आलिया भट्ट से कुछ हदतक मिलता था। इसलिये डिमांड ज्यादा था। लेकिन हमें यह नहीं पता था कि वह जिस्मफरोशी के धंधे में हैं। इसका पता अभी चला है। हमारा धर्म इसकी इजाजत नहीं देता। परिवारिक हालात से ऐसा लगा कि परिवार बेहद गरीब है। 

तीसरा पता था आशिमा मॉल से पीछे बसे एक फ्लैट का । फ्लैट बेहद ही खूबसूरत था। पांच लड़कियां साथ में रहती थी, उन्होंने ने ही लिया था। उसके दोस्तों ने बात करने से मना कर दिया। बस इतना बोली कि हमें नहीं पता था। स्वभाविक है जब इंसान मुसीबत में फंसता है तो अधिकांश लोगों को पता नहीं होता है कि वह क्या करती या करता थी। इसी दौरान दो ऐसी लड़कियों से मुलाकात हुई जो जेल से कुछेक साल पहले रिहा हुई है, वह भी एक महिला के सहयोग से। बाद में पता चला कि गोवा की रहने वाली वह लड़की भोपाल में उस महिला के स्पा में काम करने के लिये आ गई और उस अब उस महिला की हमराज है। इसके बाद मुलाकात एक  किन्नर से हुई जो मजा लेती थी...या देती थी..इसका पता नहीं। लेकिन समाज में किन्नर को स्पा में नौकरी देने का प्रचलन कब से शुरू हुआ इसका पता नहीं लेकिन पब्लिक डिमांड पर ही नौकरी मिली होगी, उसकी गारंटी ले सकता हूं। वह सबकुछ जानती थी औऱ  खुशी से पेशे में हैं। 

एक दिन पूरा लग गया इनसे मिलने और बात करने में। आखिर जिस्मफरोशी कहां नहीं है। निजी कंपनियों में जाकर देखियें जहां अधेड़ उम्र का बॉस अपने स्टाफ लड़कियों को ताड़ता है और बंद केबिन में सबकुछ की अभिलाषा रखता है और उसकी इच्छा पूरी भी होती है। नौकरी बचाने या अच्छे वेतन की लालच या मौज मस्ती के चक्कर में वो सबकुछ दे देती है जिसका धर्म औऱ समाज में इजाजत नहीं देता। ऐसी घटना आपके आस पास होती होगी। हालांकि इस पर कुछ लिखूंगा अगली बार। 
अब भी मैं यहीं सोच रहा है कि जिस्मफरोशी को धंधा कहूं या मजबूरी। क्योंकि मैं न्याय कैसे करूं। लेकिन समझ मैं आ गया कि इंसान के हिसाब से शब्दों की परिभाषा और शब्द भी बदल जाते है।